![versha varshney {यही है जिंदगी }](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaHH9c2DUn77ljN47jKe5wMJTbXZ5hUEB5JGV-K2K1_fS6jI8mplFVk4oomCVEGVHJtH22yij5EQQ42ul8HrMjyQU5msHA1CaXRuuzQfdI9i4zRppXslIti0YV4Dqcai9_QRzqcvdDlAff/s960/IMG_20170630_122227.jpg)
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Monday, 26 February 2018
३७,Missing
Today I miss it . https://hindi.sahityapedia.com/?p=94350
25 फरवरी 2018 को नोएडा (दिल्ली एन सी आर) में साहित्यपीडिया लेकर आ रहा है "साहित्यपीडिया पुस्तक लोकार्पण एवं साहित्य समारोह"|
इस कार्यक्रम में साहित्यपीडिया काव्य संग्रह "प्यारी बेटियाँ" का लोकार्पण किया जायेगा| अगर समय ने अनुमति दी तो रचनाकारों को मंच पर काव्य पाठ का अवसर देने की पूरी कोशिश की जाएगी|
इस कार्यक्रम में उपस्थित उन सभी रचनाकारों को प्रशंसा एवं प्रतिभागिता पत्र से सम्मानित किया जायेगा जिन्होंने 2017 में "बेटियाँ" विषय पर साहित्यपीडिया द्वारा आयोजित काव्य प्रतियोगिता में भाग लिया था| साथ ही सभी उपस्थित रचनाकारों को इस साहित्य समारोह में प्रतिभागिता के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा|
25 फरवरी 2018 को नोएडा (दिल्ली एन सी आर) में साहित्यपीडिया लेकर आ रहा है "साहित्यपीडिया पुस्तक लोकार्पण एवं साहित्य समारोह"|
इस कार्यक्रम में साहित्यपीडिया काव्य संग्रह "प्यारी बेटियाँ" का लोकार्पण किया जायेगा| अगर समय ने अनुमति दी तो रचनाकारों को मंच पर काव्य पाठ का अवसर देने की पूरी कोशिश की जाएगी|
इस कार्यक्रम में उपस्थित उन सभी रचनाकारों को प्रशंसा एवं प्रतिभागिता पत्र से सम्मानित किया जायेगा जिन्होंने 2017 में "बेटियाँ" विषय पर साहित्यपीडिया द्वारा आयोजित काव्य प्रतियोगिता में भाग लिया था| साथ ही सभी उपस्थित रचनाकारों को इस साहित्य समारोह में प्रतिभागिता के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जायेगा|
३५,msg
Thanks Pawan Jain sir and Aagaman family for select me -
"They have made their presence felt with their contribution in various spheres to the best of their capabilities ...Aagaman Foundation have decided to honour them with "Special Jury Awards " on Saturday 10th March at Delhi/NCR....We salute them ...The fantastic females are :
Ms. Alka Gupta ( Meerut ) , Dr Premlata Tiwari ( Hapur ) ,
Ms. Meenakshi Sukumaran ( Noida ) , Ms. Neerja Mehta ( Ghaziabad ) , Ms. Preeti Daksh ( New Delhi ) , Ms. sarita 'Reet' ( Namrup, Assam ) , Ms. Versha Varshney ( Aligarh ) , Ms. Zia Hindwal ' Geet' ( Dehradun )"
"They have made their presence felt with their contribution in various spheres to the best of their capabilities ...Aagaman Foundation have decided to honour them with "Special Jury Awards " on Saturday 10th March at Delhi/NCR....We salute them ...The fantastic females are :
Ms. Alka Gupta ( Meerut ) , Dr Premlata Tiwari ( Hapur ) ,
Ms. Meenakshi Sukumaran ( Noida ) , Ms. Neerja Mehta ( Ghaziabad ) , Ms. Preeti Daksh ( New Delhi ) , Ms. sarita 'Reet' ( Namrup, Assam ) , Ms. Versha Varshney ( Aligarh ) , Ms. Zia Hindwal ' Geet' ( Dehradun )"
३३,प्यार
https://hindi.sahityapedia.com/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-8-94660
प्यार क्या है ,क्या एक भीख है जो सबके सामने कटोरा लेकर खड़े रहने से मिल सकती है ?क्या प्यार को किसी की खुशामद करके प्राप्त किया जा सकता है ?कभी नहीं ।जिस प्रकार लाभ हानि यश अपयश सब कर्म के लिखे के अनुसार ही प्राप्त होते हैं ,उसी प्रकार प्यार और नफरत भी भाग्य के अनुसार ही मिलते हैं ।माँ बाप भाई ,बहन ,रिश्ते नाते ,सभी तो भाग्य से मिलते हैं ,फिर प्यार की अथाह चाह क्यों जीवन में विष घोलने लगती है ।सच्चे प्यार की खोज सिर्फ एक खोज ही है जो कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं होती । कुछ लोग जीवन में मिलते हैं ,दिलासा देते हैं और गुम हो जाते हैं । सच्चाई बहुत कड़वी होती है और हम सभी उससे भागने का असफल प्रयास करते हैं । पति पत्नी का रिश्ता भी तो इसी क्रम से गुजरता है ।एक दूसरे से अत्यधिक अपेक्षाएं दोनों को एक दूसरे से दूर कर देती हैं ।प्यार पैसे और शान शौकत का नाम नहीं ‘प्यार तो सिर्फ एक दूसरे से बिना शर्त के प्यार की उम्मीद रखता है ।खुद से ज्यादा अपने साथी की चिंता करना ,उसका ध्यान रखना प्यार का ही दूसरा रूप है । एक दूसरे को प्रताड़ित करना ,हर छोटी बात में दूसरे को नीचा दिखाना ,सिर्फ आँसू और दर्द ही देता है । 90%लोगों की नजरों में आज भी प्यार की परिभाषा सिर्फ सेक्स तक ही सीमित होती है ।रूहानी और मानसिक प्यार सिर्फ एक मजाक होता है उन लोगों के लिए ।जब एक पत्नी से लोगों को उम्मीद होती है कि वो यदि कहीं जा रही है तो पति को बताकर जाए तो क्या एक पत्नी को यही उम्मीद रखना शक की श्रेणी में गिना जाना चाहिए ।पति पत्नी ,दोस्ती रिश्ते नाते सभी सिर्फ विश्वास और प्यार से जुड़े होते हैं फिर उनमें अहम की भावना क्यों?प्यार का कोई मापदंड नहीं ,वो तो अथाह और निशुल्क होता है जो सिर्फ प्यार और प्यार ही मांगता है आँसूं और दर्द नहीं ।हर पल अपने साथी को रुसबा करके नीचा दिखाना सिर्फ अपने अहम को साबित करना है और कुछ भी तो नहीं ।
प्यार वो सच्चा आईना है
जो अपनी सूरत दिखाता है ।
वो क्या समझेंगे प्यार की कीमत ,
जिन्हें हर पल सिर्फ रुलाना आता है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
प्यार वो सच्चा आईना है
जो अपनी सूरत दिखाता है ।
वो क्या समझेंगे प्यार की कीमत ,
जिन्हें हर पल सिर्फ रुलाना आता है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Monday, 19 February 2018
३०,सच
हाँ तुमने सच कहा मैं खो गयी हूँ ,
झील की नीरवता में ,जो देखी थी कभी तुम्हारी आँखों में ।
तुम्हारी गुनगुनाहट में ,जो सुनी थी कभी उदासियों में ।
तुम्हें याद हो या न हो मुझे आज भी वो स्वप्न याद है ।
हाँ शायद वो स्वप्न ही तो था ,जो मैंने सच साँझ लिया था ।
खुद को ढूंढने की व्यर्थ एक नाकाम सी कोशिश कर रही हूँ आज भी ।
शायद वो पथरीले रास्ते आज भी मुझे लुभाते हैं
झील की नीरवता में ,जो देखी थी कभी तुम्हारी आँखों में ।
तुम्हारी गुनगुनाहट में ,जो सुनी थी कभी उदासियों में ।
तुम्हें याद हो या न हो मुझे आज भी वो स्वप्न याद है ।
हाँ शायद वो स्वप्न ही तो था ,जो मैंने सच साँझ लिया था ।
खुद को ढूंढने की व्यर्थ एक नाकाम सी कोशिश कर रही हूँ आज भी ।
शायद वो पथरीले रास्ते आज भी मुझे लुभाते हैं
,जिन पर तुम्हारे साथ चलने लगी थी कभी ।
जिंदगी कितनी बेबस हो जाती है कभी कभी ।
हम जानते हैं प्यार मात्र एक छलावा ही तो है ,
फंस जाते हैं फिर भी पार होने की आशा में ।
हाँ सच है खुद को ढो रही हूँ मैं आज भी
जिंदगी कितनी बेबस हो जाती है कभी कभी ।
हम जानते हैं प्यार मात्र एक छलावा ही तो है ,
फंस जाते हैं फिर भी पार होने की आशा में ।
हाँ सच है खुद को ढो रही हूँ मैं आज भी
तुम्हारी ख्वाइशों को तलाशने में ।
क्या कभी तुम मुझे किनारा दे पाओगे ,
क्या कभी जिंदगी को राह मिल पाएगी ?
सुलग रही है एक आशा न जाने क्यों ,
एक कटु सत्य के साथ आज भी ।
हाँ शायद खुद को बहला रही हूँ मैं ,
किसी मीठे भ्रम के साथ ,
क्या कभी तुम मुझे किनारा दे पाओगे ,
क्या कभी जिंदगी को राह मिल पाएगी ?
सुलग रही है एक आशा न जाने क्यों ,
एक कटु सत्य के साथ आज भी ।
हाँ शायद खुद को बहला रही हूँ मैं ,
किसी मीठे भ्रम के साथ ,
झूठी आशाओं की गठरी लिए अपने नाजुक कन्धों पर ।
सही कहा तुमने आज भी खुद को सिर्फ छल रही हूँ मैं ,
सही कहा तुमने आज भी खुद को सिर्फ छल रही हूँ मैं ,
आज भी खुद को छल रही हूँ मैं
किसी स्वप्न के साकार होने की अद्भुत ,
किसी स्वप्न के साकार होने की अद्भुत ,
अनहोनी पराकाष्ठा की सुखद अनुभूति में ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
२७,माँ
- कब तक चुप रहेगा ये समाज ,
एक समय ऐसा भी था जब उस बेटे की शादी नहीं हुई थी ।बड़े भाई की शादी हुई थी और परिवार भी बड़ा था ,उस समय उस बेटे को अपनी माँ का भाभी के साथ काम कराना बुरा लगता था ।वो भाभी जो अभी सिर्फ 19 साल की ही थी उससे पूरे घर को यही उम्मीद थी कि वो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी अकेली ही निभाये ।आंगन में कुर्सी डालकर भाभी को सुनाकर देवर मां से बोला ,चिंता मत कर माँ जब मेरी बीबी आएगी तो आराम से चेयर डालकर बैठना और आर्डर चलाना ।हर समय भाभी को नीचा दिखाना जैसे उसकी दिनचर्या में शामिल था ।क्या हुआ जब खुद की बीबी आयी और उसने उसी प्यारी माँ को रुला दिया ।खाने पीने को भी मोहताज कर दिया ।जिस घर को उस माँ ने अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर खड़ा किया ,उसी घर में उसका रहना मुहाल कर दिया ।क्या सीख देंगे ऐसे सामाजिक लोग जिन्होंने समाज में अपनी झूठी प्रतिष्ठा बना रखी हो और उन्हीं के बच्चे दादी पर हाथ उठाते हों ।उस मां को दिन रात सुनाते हों । हम अपने आस पास ऐसी घटनाएं रोज देखते हैं फिर भी चुप रहते हैं ।अरे बुढ़ापा तो आप सब का भी आएगा ।क्या आप कभी बुजुर्ग नहीं होंगे ?क्या आपकी पत्नी के साथ होते हुए अन्याय को आप सहन कर पाएंगे ?ये कैसा समाज है जहां भागवत ,कथा ,पूजा ,चढ़ाबे के नाम पर हम हजारों रुपये गर्व के साथ खर्च कर देते हैं लेकिन अपने बूढ़े माँ बाप को खाना खिलाने में भी दर्द होता है ।धिक्कार है ऐसे बेटों पर ।ऐसे बेटे समाज के लिए एक कलंक हैं।दुनिया के सामने शराफत का चोगा पहने ,समाज में अपना रुतबा दिखाने वाले ही अपनी मां को पानी तक के लिए मजबूर कर देते हैं ।क्या अपनी माँ का दर्द उन्हें दिखाई नहीं देता ? कोई बेटा ऐसा कैसे कर सकता है ।दिल करता है........ ऐसे नालायक बेटे को।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
२५,नारी
मेरी कविता कनाडा की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका "प्रयास "के फरवरी अंक में ,आभार आदरणीय Saran Ghai ji .
नारी हूँ मैं , अबला तो नहीं ,एक ठहरा हुआ बसंत भी हूँ
त्याग का प्रतिमान बनकर खुद को ही छला करती हूं ।
कभी कभी अपनी तन्हाइयों से बात करती हूं ।
जानने का दिल के गहरे राज, बहुत प्रयास करती हूं ।।
सब कुछ तो है मेरे पास ,फिर उदासी का दौर क्यों है ।
अतीत में जाकर क्यों दबे हुए राज, उजागर करती हूं ।।
वो हसीन वक़्त का नजारा, जो कभी जान से भी प्यारा था ।
उनींदी आंखों से क्यों ख़्वाबों को नजदीक महसूस करती हूं ।।
तुम्हारे लिए वो सिर्फ एक शर्त रही होगी ,
लुटाकर मेरी खुशियों की तमाम उम्र
क्यों तुमको याद करती हूं ।।
पास हो मेरे दिल के आज भी, कुछ इस तरह ।
रुके हुए लम्हों को जैसे हर पल जीया करती हूं ।।
सुबह की हल्की धूप जैसे दिलों को राहत देती है ,
शाम की हल्की हवाओं में सुकून महसूस करती हूं ।।
मुश्किल है बहुत प्यार की जगह समझौते को देना ।
बुझे हुए दीप में आज भी यादों की चिंगारी भरती हूँ ।।
मैं नारी हूँ वही सदियों पुरानी ,आज भी उसी मोड़ पर खड़ी ।
खुशियों की फिराक में हर पल खुद से लड़ाई लड़ती हूँ ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
नारी हूँ मैं , अबला तो नहीं ,एक ठहरा हुआ बसंत भी हूँ
त्याग का प्रतिमान बनकर खुद को ही छला करती हूं ।
कभी कभी अपनी तन्हाइयों से बात करती हूं ।
जानने का दिल के गहरे राज, बहुत प्रयास करती हूं ।।
सब कुछ तो है मेरे पास ,फिर उदासी का दौर क्यों है ।
अतीत में जाकर क्यों दबे हुए राज, उजागर करती हूं ।।
वो हसीन वक़्त का नजारा, जो कभी जान से भी प्यारा था ।
उनींदी आंखों से क्यों ख़्वाबों को नजदीक महसूस करती हूं ।।
तुम्हारे लिए वो सिर्फ एक शर्त रही होगी ,
लुटाकर मेरी खुशियों की तमाम उम्र
क्यों तुमको याद करती हूं ।।
पास हो मेरे दिल के आज भी, कुछ इस तरह ।
रुके हुए लम्हों को जैसे हर पल जीया करती हूं ।।
सुबह की हल्की धूप जैसे दिलों को राहत देती है ,
शाम की हल्की हवाओं में सुकून महसूस करती हूं ।।
मुश्किल है बहुत प्यार की जगह समझौते को देना ।
बुझे हुए दीप में आज भी यादों की चिंगारी भरती हूँ ।।
मैं नारी हूँ वही सदियों पुरानी ,आज भी उसी मोड़ पर खड़ी ।
खुशियों की फिराक में हर पल खुद से लड़ाई लड़ती हूँ ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Saturday, 10 February 2018
२३,कवितायेँ
शुभ प्रभात जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।मेरी रचनाएँ सौरभ दर्शन पाक्षिक पत्र (राजस्थान में )धन्यवाद संपादक मंडल ।
ऋतु बसंत की
चटक मटक कर गागरिया में नीर भरन को आई वो ,
यूँ सकुचाती ,यूँ लजाती ,अंखियन में लाज भर लाई वो ।
मदमाती ,मतवाली सी चंचल चपल अनौखी छवि की वो ,
अपलक ,रूहानी मुस्कान से खुद को सजा लाई वो।
चंचल चितवन ,नैन घनेरे ,पलकों में सपने भर लाई वो ,
मधुमालती ,गुलाब ,कनेर जैसे आँचल में भर लाई वो ।
एक किरण है ,एक है आशा ,दूजी मुस्कान है मंजिल उसकी ।
अवतार है जैसे रंभा का ,दीप प्रज्वलित कर
लाई वो ।
अगणित ,अंकुर ,अणिमा जैसी प्रीत छलकती मुखमंडल पर ,
वो है मेरी शारदे माँ ,संग अपने एक अजूबा ले आई वो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
२२,हिंदी प्रोत्साहन कार्यक्रम
जय श्री कृष्णा मित्रो ,कल 2/2/18 को।अलीगढ़ की प्रदर्शनी में हिंदी प्रोत्साहन समिति की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया ।जिसमें अलीगढ़ और बाहर के भी कवि और साहित्यकारों को आमंत्रित किया गया ।देश के जाने माने हास्य व्यंग्य कवि श्री प्रेम किशोर पटाखा सहित डॉ दिनेश शर्मा ,नरेंद्र शर्मा नरेंद्र ,श्री ओम वार्ष्णेय ,पूनम वार्ष्णेय पूनम ,सुभाष तोमर ,वेद प्रकाश मणि ,अनिल नवरंग आदि मौजूद रहे।आपकी मित्र को शहर विधायक आदरणीय संजीव राजा जी के कर कमलों से सम्मान प्राप्त करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ ।
२०,सवाल
Jai shree krishna have a nice day
http://www.badaunexpress.com/ badaun-plus/s-534/
अक्सर छोटे छोटे सवाल हमें बड़ी उलझन में डाल देते हैं ।रोजमर्रा की जिंदगी में काफी सवाल जो मन को विचलित कर जाते हैं ,जैसे कि हम किसी के लिए अपने साइड से कितना भी अच्छा करने की कोशिश करें ,फिर भी बदनामी ही मिलती है ।ये सभी जानते हैं कि हानि लाभ ,यश अपयश ,सब विधि के हाथ है ।यदि सब विधि के ही हाथ है तो फिर जीवन क्या है ?सिर्फ कर्मों का फल ?जो किया है वो जरूर भोगना पड़ेगा ,ये भी सच है ।फिर जिंदगी सिर्फ कर्म पर ही आधारित है ।ईश्वर सब कुछ देखता है ,फिर अन्याय क्यों ?भगवद्गीता ,सारे पुराण भी कर्म को ही महान बताते हैं लेकिन कर्म करने के बाद भी खुशी की प्राप्ति क्यों नहीं ?जितना पढ़ते हैं उतने ही प्रश्न तैयार ।अतीत को भूल जाओ ,आज को याद रखो ।क्या अतीत हमारे वर्तमान को प्रभावित नहीं करता ?ऐसे ही अनगिनत सवाल हैं जो मन को व्यथित कर जाते हैं ।जब हमारे हाथ मे कुछ नहीं होता तो हम सभी अपने मन को यही कहकर समझा लेते हैं जो हुआ अच्छे के लिए हुए ,जो हो रहा है उसमें भी कुछ अच्छाई होगी ।हम सभी इस रंगशाला के पात्र हैं और निर्देशक सिर्फ भगवान । उसके घर देर है अंधेर नहीं ।दुनिया में हम सभी के जीने का सिर्फ एक ही सहारा है और वो है आस्था और विश्वास । चलिए फिर चलते हैं सारे सवालों को छोड़कर उसी आस्था के साथ ,जय श्री कृष्णा जय महाकाल ।
☺️
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
http://www.badaunexpress.com/
अक्सर छोटे छोटे सवाल हमें बड़ी उलझन में डाल देते हैं ।रोजमर्रा की जिंदगी में काफी सवाल जो मन को विचलित कर जाते हैं ,जैसे कि हम किसी के लिए अपने साइड से कितना भी अच्छा करने की कोशिश करें ,फिर भी बदनामी ही मिलती है ।ये सभी जानते हैं कि हानि लाभ ,यश अपयश ,सब विधि के हाथ है ।यदि सब विधि के ही हाथ है तो फिर जीवन क्या है ?सिर्फ कर्मों का फल ?जो किया है वो जरूर भोगना पड़ेगा ,ये भी सच है ।फिर जिंदगी सिर्फ कर्म पर ही आधारित है ।ईश्वर सब कुछ देखता है ,फिर अन्याय क्यों ?भगवद्गीता ,सारे पुराण भी कर्म को ही महान बताते हैं लेकिन कर्म करने के बाद भी खुशी की प्राप्ति क्यों नहीं ?जितना पढ़ते हैं उतने ही प्रश्न तैयार ।अतीत को भूल जाओ ,आज को याद रखो ।क्या अतीत हमारे वर्तमान को प्रभावित नहीं करता ?ऐसे ही अनगिनत सवाल हैं जो मन को व्यथित कर जाते हैं ।जब हमारे हाथ मे कुछ नहीं होता तो हम सभी अपने मन को यही कहकर समझा लेते हैं जो हुआ अच्छे के लिए हुए ,जो हो रहा है उसमें भी कुछ अच्छाई होगी ।हम सभी इस रंगशाला के पात्र हैं और निर्देशक सिर्फ भगवान । उसके घर देर है अंधेर नहीं ।दुनिया में हम सभी के जीने का सिर्फ एक ही सहारा है और वो है आस्था और विश्वास । चलिए फिर चलते हैं सारे सवालों को छोड़कर उसी आस्था के साथ ,जय श्री कृष्णा जय महाकाल ।
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वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
१८,जीवन
ये कैसी फिजा है ।
जल रहा है दिल,
न उठता धुँआ है ।
बेबस है जलजला ,
चुप ये काफिला है ।
आँसूं है गमगीन ,
न लगती दुआ है ।
भरम प्यार का यूँ
दिल में छिपाए ,
छलते रहे खुद को
मुस्कान के दीप जलाए ।
न कोई सफर है ,
न कोई है साथी ।
अजब है पहेली ,
गजब है ये उलझन।
ये कैसा है जीवन ,
ये कैसा है उपवन ।
सुलग ये रहा है ,
झुलस क्यों रहा है ।
यही है जो जीवन ,
जो कातिल बना है ।
उलझन ही उलझन
तो क्यों है ये जीवन ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
17,अमर उजाला
जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।
मेरी कविता amarujala.com par
Child marriage
बाल विवाह
बच्चियों की चहकती आवाज से घर आज भी आबाद था ।
सो रहा था सारा मोहल्ला पर वो घर अब भी गुलजार था ।
माँ के साये में पनप रही थी एक और जिंदगी ,
मुन्नी की आवाज से हर दिल को प्यार था ।
गरीबी ने दे दी थी दस्तक दबे पांव दरवाजे पर ,
मजबूरी से घर की अनजान थी मुन्नी ।
बन गयी थी मासूम आज किसी की बेगम ,किसी की सौगात थी ।
खुश थी पाकर कुछ नए गहने ,कुछ खिलौनों में व्यस्त थी ।
खरीदकर चला था आज वो मासूम को ,
मासूम मुन्नी आज भी झूठी खुशियों में मस्त थी ।
बेचकर बेटी की इज्जत कुछ सामान आया था,
कई दिनों बाद आज सबने खाना खाया था ।
त्रस्त थी माँ कहीं किसी अनजानी आशंका से,
ये कैसा वक़्त उसकी जिंदगी में आया था ।
खेलते खेलते हंसी की आवाज चीख में बदल गयी ,
नन्ही सी मुन्नी आज किसी की जरूरत बन गयी ।
अधेड़ उम्र ,पके से बाल ,चेहरे पर गड्ढों का भास था ,
शायद यही थी मुन्नी की किस्मत ,उसका नसीब था ।
(कब बदलेंगी अनगिनत मुन्नियों की किस्मत ,
कब समाज बदलेगा ।
कब तक डसेंगी कुछ बेजान प्रथाएं ,
कब तक न्याय को मिलेंगी चुनौतियां ।)
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
मेरी कविता amarujala.com par
Child marriage
बाल विवाह
बच्चियों की चहकती आवाज से घर आज भी आबाद था ।
सो रहा था सारा मोहल्ला पर वो घर अब भी गुलजार था ।
माँ के साये में पनप रही थी एक और जिंदगी ,
मुन्नी की आवाज से हर दिल को प्यार था ।
गरीबी ने दे दी थी दस्तक दबे पांव दरवाजे पर ,
मजबूरी से घर की अनजान थी मुन्नी ।
बन गयी थी मासूम आज किसी की बेगम ,किसी की सौगात थी ।
खुश थी पाकर कुछ नए गहने ,कुछ खिलौनों में व्यस्त थी ।
खरीदकर चला था आज वो मासूम को ,
मासूम मुन्नी आज भी झूठी खुशियों में मस्त थी ।
बेचकर बेटी की इज्जत कुछ सामान आया था,
कई दिनों बाद आज सबने खाना खाया था ।
त्रस्त थी माँ कहीं किसी अनजानी आशंका से,
ये कैसा वक़्त उसकी जिंदगी में आया था ।
खेलते खेलते हंसी की आवाज चीख में बदल गयी ,
नन्ही सी मुन्नी आज किसी की जरूरत बन गयी ।
अधेड़ उम्र ,पके से बाल ,चेहरे पर गड्ढों का भास था ,
शायद यही थी मुन्नी की किस्मत ,उसका नसीब था ।
(कब बदलेंगी अनगिनत मुन्नियों की किस्मत ,
कब समाज बदलेगा ।
कब तक डसेंगी कुछ बेजान प्रथाएं ,
कब तक न्याय को मिलेंगी चुनौतियां ।)
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
११,ईश्वर एक है
Gd morning jai shree krishna to all ,have a nice day .
कभी कभी कुछ सवाल ऐसे भी होते हैं जो हमारे दिल को छू जाते हैं ।उसी का जवाब देने की कोशिश की है ,क्या आप सभी इससे सहमत हैं ?
Respected friends you r absolutely right ,but it's only for those relations who made by us .God is Almighty .You can say only Radhey Radhey ,jai shree krishna , jai mata di ,jai mahakal.jai bholenath jai maa lakshmi ,because all s root is one .If you learn anyone ,you worship all God .Because God is one .
सारी शक्तियां एक ही हैं ,फिर उनको अलग क्या देखना ।हम सभी अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी एक देवी देवता का नाम लेते हैं ।फिर किसी में अंतर कैसे हो सकता है ?जिस तरह जड़ को पानी देने से पेड़ की सभी शाखाओं को जल मिलता है ,उसी तरह आप मन से किसी का भी नाम लो ,सब एक ही ईश्वर के खाते में जमा होता है ।आप किसी भी पुराण को उठाकर देखिए, सभी में उसी भगवान को महान बताया गया है जिनके नाम से वो पुराण है,फिर चाहे वो गणेश पुराण हो या विष्णु पुराण ।शिव पुराण हो या देवी भागवत ,फिर कोई अलग कैसे ,कौन छोटा ,कौन बड़ा ?सभी एक ही हैं ,सभी का मूल एक ही है ।भागवत को पढ़कर लोगों के मन मे एक सवाल आता है कि राधा और कृष्ण की शादी क्यों नही हुई ? जिसका उत्तर भी उसी में छिपा है ।शादी दो लोगों की होती है ,एक आत्मा की नहीं ,राधा और कृष्णा तो एक ही हैं ।आगे आप सबकी श्रद्धा है ।जय श्री कृष्णा ,जय भोलेनाथ ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
कभी कभी कुछ सवाल ऐसे भी होते हैं जो हमारे दिल को छू जाते हैं ।उसी का जवाब देने की कोशिश की है ,क्या आप सभी इससे सहमत हैं ?
Respected friends you r absolutely right ,but it's only for those relations who made by us .God is Almighty .You can say only Radhey Radhey ,jai shree krishna , jai mata di ,jai mahakal.jai bholenath jai maa lakshmi ,because all s root is one .If you learn anyone ,you worship all God .Because God is one .
सारी शक्तियां एक ही हैं ,फिर उनको अलग क्या देखना ।हम सभी अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी एक देवी देवता का नाम लेते हैं ।फिर किसी में अंतर कैसे हो सकता है ?जिस तरह जड़ को पानी देने से पेड़ की सभी शाखाओं को जल मिलता है ,उसी तरह आप मन से किसी का भी नाम लो ,सब एक ही ईश्वर के खाते में जमा होता है ।आप किसी भी पुराण को उठाकर देखिए, सभी में उसी भगवान को महान बताया गया है जिनके नाम से वो पुराण है,फिर चाहे वो गणेश पुराण हो या विष्णु पुराण ।शिव पुराण हो या देवी भागवत ,फिर कोई अलग कैसे ,कौन छोटा ,कौन बड़ा ?सभी एक ही हैं ,सभी का मूल एक ही है ।भागवत को पढ़कर लोगों के मन मे एक सवाल आता है कि राधा और कृष्ण की शादी क्यों नही हुई ? जिसका उत्तर भी उसी में छिपा है ।शादी दो लोगों की होती है ,एक आत्मा की नहीं ,राधा और कृष्णा तो एक ही हैं ।आगे आप सबकी श्रद्धा है ।जय श्री कृष्णा ,जय भोलेनाथ ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
८,प्रयास पत्रिका
जय श्री कृष्णा मित्रो ,कनाडा की अंतरराष्ट्रीय ई मासिक पत्रिका "प्रयास "में ।आभार prayas patrika .जनवरी
"जीना सीख लिया तुमने बिन मेरे ,यही थी शायद वक़्त की मर्जी ,
खोज रही हैं आज भी नजरें मेरी ,भूल हुए सवालों की पर्ची ।
तेरी मर्जी मेरी मर्जी ,हम दोनों की एक ही मर्जी ।
मिल जाएं आशिकों को उनकी मंजिल ,रब से है अब यही अर्जी ।"
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
"जीना सीख लिया तुमने बिन मेरे ,यही थी शायद वक़्त की मर्जी ,
खोज रही हैं आज भी नजरें मेरी ,भूल हुए सवालों की पर्ची ।
तेरी मर्जी मेरी मर्जी ,हम दोनों की एक ही मर्जी ।
मिल जाएं आशिकों को उनकी मंजिल ,रब से है अब यही अर्जी ।"
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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