२३,कवितायेँ
शुभ प्रभात जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।मेरी रचनाएँ सौरभ दर्शन पाक्षिक पत्र (राजस्थान में )धन्यवाद संपादक मंडल ।
ऋतु बसंत की
चटक मटक कर गागरिया में नीर भरन को आई वो ,
यूँ सकुचाती ,यूँ लजाती ,अंखियन में लाज भर लाई वो ।
मदमाती ,मतवाली सी चंचल चपल अनौखी छवि की वो ,
अपलक ,रूहानी मुस्कान से खुद को सजा लाई वो।
चंचल चितवन ,नैन घनेरे ,पलकों में सपने भर लाई वो ,
मधुमालती ,गुलाब ,कनेर जैसे आँचल में भर लाई वो ।
एक किरण है ,एक है आशा ,दूजी मुस्कान है मंजिल उसकी ।
अवतार है जैसे रंभा का ,दीप प्रज्वलित कर
लाई वो ।
अगणित ,अंकुर ,अणिमा जैसी प्रीत छलकती मुखमंडल पर ,
वो है मेरी शारदे माँ ,संग अपने एक अजूबा ले आई वो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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