६.कतरा कतरा जिंदगी
कतरा कतरा जिंदगी ,खुद को न जीने दे
मायूस सी बेखुदी गम को न पीने दे।
उलझकर टूट न जाएँ कहीं ये तारे ,
चाँद की नजाकत वक़्त को समझने न दे।
महफूज थी चांदनी कभी अपनी उदासियों में,
बिखर रही है आज चाँद के आगोश में ,
मंजिलों की लगी ऐसी तलब जिंदगी को,
सहकर सौ जख्म भी खुद को खोने न दे।।
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