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Friday 24 June 2016

                                          ७.कबूतर  
सुबह होते ही देखती हूँ कबूतर ने ,
फिर से नया घरौंदा बसाया है ।
तिनका तिनका लाकर फिर से 
उसे सजाया है ।
देख रही हूँ पिछले नौ सालों से ,
दो कबूतरों का प्यार अपने बच्चों के लिए
कितना निस्वार्थ सेवा -भाव से
बच्चों को प्यार से खिलाया है ।
मूक हैं ,बोल तो नहीं सकते ,
पर स्नेह इंसान से कम भी नहीं करते
अपने भाव से यही तो समझाया है ।
फिर क्यों हम इंसानों ने बच्चों के
प्यार में भी स्वार्थ दिखलाया है ।
नेह से बड़ा करके छोड़ देते हैं
खुले आस्मां में अपनी जिंदगी जीने के लिए ,
न कभी अहसान दिखलाया है ।
फिर क्यों इंसानों ने बच्चों से अपनी
प्रीत का कर्ज बापस माँगा है ।

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