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Tuesday 28 June 2016

२२.सपना
सपनों की डोली में मुझको बैठाकर ,
ले जा पिया अपने दिल में बसाकर !
बहक जाऊं जो कभी साथ में तेरे ,
समझा देना तुम देकर इशारे !
न हूँ मैं गंगा ,न हूँ मैं यमुना ,
रहना है बनकर साथ वो धारें !
मिल जाती है जो बनकर
शीतल संगम की फुहारें !
महका देती है तन और मन को ,
जैसे हो कोई सुंगंध की बयारें !
खो न जाऊं ख्वाब में तुम्हारे ,
आ जाओ पिया लेकर प्रेम रस की फुहारें !!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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