१६२,बेटी दिवस
जय श्री कृष्णा ,अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस की आप सभी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
(इसी संदर्भ में एक कहानी याद आती है ,जो मेरे दिल के बहुत करीब है )
कैसे लिखूं क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आता कभी कभी ?शादी होने के बाद ससुराल में जाना और वहां सास ससुर का जल्दी से अम्मा बाबा बनने का सपना पूरा करने की इच्छा में शायद मुझे भी माँ बनने की खुशी होने लगी थी ,मेरे पति चार भाई हैं ।
उसके बाद भी सास ससुर की पहली इच्छा बेटा होने की ही थी ।रात दिन घर में पूजासब पाठ ,और बेटा होने के लिए मन्नतें मांगना दिल मे एक अजीब सा डर बैठने लगा था । कहीं बेटा नहीं हुआ तो बेटी हुई तो ? एक एक दिन बड़ी मुश्किल से गुजरता था ।माँ बनने की खुशियां जैसे कहीं खो गयी थी ।इसी कशमकश में दिन गुजरते गए । वो घड़ी भी आ ही गयी जिसका बेसब्री से इंतजार था । हमारे यहां पहले बच्चे को नए कपड़े नहीं पहनाते इसलिए मैं अपनी सहेली की बेटी के कुछ छोटे कपड़े ले आयी थी ।लेबर रूम में 3.30 घंटे दर्द सहने के बाद जब बच्चा हुआ तो मेरा पहला सवाल सिर्फ यही था कि क्या हुआ है बेटी या बेटा ।नर्स ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने सारा दर्द भूलकर फिर से पूछा कि बताती क्यों नहीं क्या हुआ है ,तो नर्स बोली कि लक्ष्मी आयी है ।इतना सुनते ही जैसे मैं धरातल पर आ गयी ।आंखों से आंसूं बहने लगे कि अब क्या होगा । जिसका डर था वही हुआ ।बेटी होने की सुनकर किसी को कोई खुशी नहीं हुई और कह दिया कि बेटी के कपड़े लायी थी इसलिए बेटी हो गयी ।वाह रे हमारी पढ़ी लिखी सोच । मौसमी का रस पिया था इसलिए बेटी हो गयी ।मैं बुखार में पड़ी तप रही थी लेकिन बजाय हिम्मत के सिर्फ ताने ही मिले । पढ़ी लिखी फैमिली होने के बाद भी ,जिस घर मे एक भी बेटी नही थी ,उसको वो प्यार नहीं मिला ।शायद इसके लिए भी मैं ही कसूरवार थी ।बाद में उसी बेटी को सभी का बहुत प्यार मिला ,लेकिन कभी कभी वक़्त पर की गई कुछ बातें जीवन भर याद रह जाती हैं ।मेरी बेटी शुरू से ही पढ़ने लिखने में होशियार थी ।मैंने और उसके पिता ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी ।उसका सपना एक अध्यापिका बनकर समाज की बेटियों को सही राह दिखाना था । आज मेरी बेटी इंग्लिश में पोस्ट ग्रेजुएट ,pgdca ,Ntt ,C,tet सभी क्लियर कर चुकी है और एक सफल अध्यापिका भी हैं । उसने मेरे सपने को साकार किया ।मुझे गर्व है अपनी बेटी पर ।आप सभी को भी अपनी बेटियों पर गर्व होना चाहिए । बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ का नारा तभी सार्थक हो सकता है ,जब हम सभी बेटियों के जीवन के प्रति एक अच्छी और सार्थक सोच रखें ।आज भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों का % कम है ,जो यही बताता है कि आज भी हमारी सोच पुराने दौर में ही अटकी हुई है ।
(इसी संदर्भ में एक कहानी याद आती है ,जो मेरे दिल के बहुत करीब है )
कैसे लिखूं क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आता कभी कभी ?शादी होने के बाद ससुराल में जाना और वहां सास ससुर का जल्दी से अम्मा बाबा बनने का सपना पूरा करने की इच्छा में शायद मुझे भी माँ बनने की खुशी होने लगी थी ,मेरे पति चार भाई हैं ।
उसके बाद भी सास ससुर की पहली इच्छा बेटा होने की ही थी ।रात दिन घर में पूजासब पाठ ,और बेटा होने के लिए मन्नतें मांगना दिल मे एक अजीब सा डर बैठने लगा था । कहीं बेटा नहीं हुआ तो बेटी हुई तो ? एक एक दिन बड़ी मुश्किल से गुजरता था ।माँ बनने की खुशियां जैसे कहीं खो गयी थी ।इसी कशमकश में दिन गुजरते गए । वो घड़ी भी आ ही गयी जिसका बेसब्री से इंतजार था । हमारे यहां पहले बच्चे को नए कपड़े नहीं पहनाते इसलिए मैं अपनी सहेली की बेटी के कुछ छोटे कपड़े ले आयी थी ।लेबर रूम में 3.30 घंटे दर्द सहने के बाद जब बच्चा हुआ तो मेरा पहला सवाल सिर्फ यही था कि क्या हुआ है बेटी या बेटा ।नर्स ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने सारा दर्द भूलकर फिर से पूछा कि बताती क्यों नहीं क्या हुआ है ,तो नर्स बोली कि लक्ष्मी आयी है ।इतना सुनते ही जैसे मैं धरातल पर आ गयी ।आंखों से आंसूं बहने लगे कि अब क्या होगा । जिसका डर था वही हुआ ।बेटी होने की सुनकर किसी को कोई खुशी नहीं हुई और कह दिया कि बेटी के कपड़े लायी थी इसलिए बेटी हो गयी ।वाह रे हमारी पढ़ी लिखी सोच । मौसमी का रस पिया था इसलिए बेटी हो गयी ।मैं बुखार में पड़ी तप रही थी लेकिन बजाय हिम्मत के सिर्फ ताने ही मिले । पढ़ी लिखी फैमिली होने के बाद भी ,जिस घर मे एक भी बेटी नही थी ,उसको वो प्यार नहीं मिला ।शायद इसके लिए भी मैं ही कसूरवार थी ।बाद में उसी बेटी को सभी का बहुत प्यार मिला ,लेकिन कभी कभी वक़्त पर की गई कुछ बातें जीवन भर याद रह जाती हैं ।मेरी बेटी शुरू से ही पढ़ने लिखने में होशियार थी ।मैंने और उसके पिता ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी ।उसका सपना एक अध्यापिका बनकर समाज की बेटियों को सही राह दिखाना था । आज मेरी बेटी इंग्लिश में पोस्ट ग्रेजुएट ,pgdca ,Ntt ,C,tet सभी क्लियर कर चुकी है और एक सफल अध्यापिका भी हैं । उसने मेरे सपने को साकार किया ।मुझे गर्व है अपनी बेटी पर ।आप सभी को भी अपनी बेटियों पर गर्व होना चाहिए । बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ का नारा तभी सार्थक हो सकता है ,जब हम सभी बेटियों के जीवन के प्रति एक अच्छी और सार्थक सोच रखें ।आज भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों का % कम है ,जो यही बताता है कि आज भी हमारी सोच पुराने दौर में ही अटकी हुई है ।
No comments:
Post a Comment