४१.दर्द
जाने क्यों लगता है
जैसे दामन मेरा झटक गया ,
वो आया था झोंका बहार का
क्यों घायल मुझको कर गया ।
वो पतझड़ की राहें कभी
अजीज थीं मेरी ,
दिखाकर सावन का ख्वाब
क्यों सपना मेरा टूट गया ।
बलखाती फिरती थी
बादल को छूने की चाह में ,
उड़ती हुई हवा ने क्यों
दूर मुझे छिटक दिया ।
प्रीतम हो या हो सपना
कोई अधूरा सा ,
ओ बिछुड़े हुए पल क्यों
साहस मेरा तोड़ दिया ।
जैसे दामन मेरा झटक गया ,
वो आया था झोंका बहार का
क्यों घायल मुझको कर गया ।
वो पतझड़ की राहें कभी
अजीज थीं मेरी ,
दिखाकर सावन का ख्वाब
क्यों सपना मेरा टूट गया ।
बलखाती फिरती थी
बादल को छूने की चाह में ,
उड़ती हुई हवा ने क्यों
दूर मुझे छिटक दिया ।
प्रीतम हो या हो सपना
कोई अधूरा सा ,
ओ बिछुड़े हुए पल क्यों
साहस मेरा तोड़ दिया ।
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