४६,कविता
दिन बैचैन रात भी दीवानी है ।
मैं हूँ अक्षर तुम मेरी कहानी हो।
सात सुरों जैसा संगम अपना ,
मैं हूँ वीणा तुम मेरी रागिनी हो ।
पुलकित हो झूम जाती हूँ ,
अक्स तेरा चहुँ ओर पाती हूँ ।
मैं हूँ कागज तुम मेरी पाती हो ,
तुम से ही तो जीवन पाती हूँ ।
अधरों पर हैं गीत मिलन के ,
दिल में तन्हाई रहती है ।
मैं हूँ जीवन तुम धड़कन हो ,
मनमीत तुम्हें ही पाती हूँ ।
उर में बसाई है छवि तेरी ,
छंद में ज्यूँ लय रहती है ।
मैं हूँ खुशबू उपवन की ,
तुम में ही तो खो जाती हूँ।
जीवन है एक जिम्मेदारी ,
सार है जीवन का दुनियादारी ।
उम्मीदों के रेतीले पनघट पर ,
राह तुम्हारी ही तकती हूं ।
आसमान जैसे ख्वाब सजाये ,
मैं हूँ चपला तुम यामिनी हो ।
साथ तुम्हारा दिल का संबल ,
मैं हूँ शब्द तुम मेरी शायरी हो |
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