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Friday 29 July 2016

६७.रचना

                                       ६७ .नारी और समाज 

{आज की मेरी रचना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में है !मैं न तो मायावती जी  के पक्ष में हूँ न ही स्वाति सिंह जी के !यहाँ बात सिर्फ नारी की अस्मत की है ! समाज में दयाशंकर और नसीमुद्दीन जैसे लोगों को एक बार जरूर सोचना चाहिए नारी के लिए कुछ बोलने से पहले !}
अजब चली बहार है ,सतयुग हो या कलयुग ,नारी होना हुआ गुनाहगार है :
हारे थे जब पांडव जुए में ,क्यूँ द्रौपदी पर बाजी लगाई थी ?
कर रहा था दुर्योधन चीरहरण ,क्यूँ मुंह पर पट्टी बाँधी थी !
वन वन भटकी राम संग सीता ,जो हर पल साथ निभाती थी :
कहने पर मात्र एक धोबी के ,अग्नि परीक्षा ली जाती थी !
लड़ते जब दो पुरुष आपस में ,बीच में माँ बहन को ले आते हैं ,
क्यूँ बनाकर मोहरा एक औरत को ,सरे आम रुस्बा करते हैं !
विज्ञापन हो पुरुष के कपड़ों का ,या फिर हो मोटर साइकिल का :
हर विज्ञापन में क्यूँ औरत को प्रचार की वस्तु बनाते हो !
दुनिया में गाड़ रही झंडे अपने अस्तित्व के ,वो नारी देवी कहलाती है ,
पूजते हो नव् दुर्गों में ,क्यूँ मंदिरों में भी सर झुकाते हो !
पढ़ते इतनी वेड ऋचाएं ,कृति हैं वो भी नारी की ,
क्यूँ गार्गी और अनुसुइया का योगदान भूल जाते हो !
फ़िल्में हो या फिर परिवार ,बिन उसके चल न पाते हैं !
नीरस लगता जीवन सारा ,क्यूँ उसका जीवन नरक बनाते हो !
मत घसीटो औरत को ,अपनी लोलुपता के अंगारों में ,
औरत है दुर्गा,वो है काली ,क्यूँ उसकी शक्ति को परवान चढ़ाते हो !
मिट गया जिस दिन अस्तित्व ,धरती से ममता की उस देवी का ,
कैसे बचा पाओगे खुद का जीवन ,...........................................
आज जिसे अपमानित कर नंगा नाच नचाते हो !
मत ललकारो औरत को ,फिर वो चाहे हो मायावती या फिर स्वाति सिंह :
बात नारी की अस्मत की है ,क्यूँ भेदभाव दिखलाते हो !
गलत हैं जो उन्हें शीशा दिखाओ तो ,क्यूँ बात को राजनीति की और ले जाते हो !!
                                  वर्षा वार्ष्णेय  अलीगढ
 सुरेंद्रनगर संगम बिहार कॉलोनी गली नंबर ३ नगला तिकोना रोड अलीगढ़ 

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