महसूस करना और समाहित करना एक ही बात के दो पहलू है ,
गुजर जाना या गुजार देना ,जिंदगी के दो अंजान सवालात हैं ।
जीता तो है हर इंसान जिंदगी अपनी पर दूसरों के सुख के लिए ,
कब रख पाता है खुद का ख्याल अपनी छोटी सी ख़ुशी के लिए।
वो दूर शांत बहता हुआ समंदर थक जाता है अपनी नीरवता से,
उठ जाता है भयंकर तूफ़ान उसके दिल में भी कुछ वक्त के लिए
सहती रहती है धरती भी बोझ हम सबका सिर्फ शांति के लिए ,
क्यों नहीं समझ पाते हम उसकी पीड़ा अपना अभिमान लिए ।
छोडो भी रहने दो बेकार की बातों को कौन समझ पायेगा ,
एक पत्थर दिल कब जी पाता है अपनी खुशियों के लिए ।।
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