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Saturday 30 July 2016

दर्द

                                            ६८ .दर्द 

उम्मीदों की शाख पर जब आ जाती है दरार ,
ढह जाती है मंजिलें बिन उठाये तलवार ।
दिल की गहराई में जाओगे तो कैसे भुला पाओगे ,वो हमारी यादों की सहमती सी तकरार ।
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शोख इरादे नापाक नहीं होते ,
साजिशें उन्हें मंजिल नहीं देती ।
झांकती दरारें दिखा जाती हैं
दिलों में छिपी सच्चाई .............
वरना हंसी कभी आइना नहीं होती ।

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