१०२ पिता
पिता एक अबूझ कहानी ,
न आंखों में आंसूं ,
न होठों पर बातें पुरानी ।
लगे रहते चुपचाप कर्म में ,
लगाकर दिल में नेह और प्यार
की फसल की जिम्मेदारी ।
माँ है धरती तो पिता है आकाश ,
कैसे पूर्ण हो पाती ,
बिन आकाश के धरती की
प्यास भरी जिंदगानी ।
न आंखों में आंसूं ,
न होठों पर बातें पुरानी ।
लगे रहते चुपचाप कर्म में ,
लगाकर दिल में नेह और प्यार
की फसल की जिम्मेदारी ।
माँ है धरती तो पिता है आकाश ,
कैसे पूर्ण हो पाती ,
बिन आकाश के धरती की
प्यास भरी जिंदगानी ।
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