Followers

Tuesday 4 July 2017

                                    १०१,गजल 

कतरा कतरा जिंदगी ,खुद को न जीने दे 
मायूस सी बेखुदी गम को न पीने दे।

उलझकर टूट न जाएँ कहीं ये तारे ,
चाँद की नजाकत वक़्त को समझने न दे।

महफूज थी चांदनी कभी अपनी उदासियों में,
बिखर रही है आज चाँद के आगोश में ,

मंजिलों की लगी ऐसी तलब जिंदगी को,
सहकर सौ जख्म भी खुद को खोने न दे।।

No comments:

Post a Comment