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Saturday 29 July 2017

                                        १२५,अहसास

 जय श्री कृष्णा ,मेरी कविता अहसास saahitypedia पर ,

http://sahityapedia.com/13%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B8-84827/


जर्रा जर्रा वक़्त का जैसे रो रहा था ,
आंसुओं से कोई चेहरा भिगो रहा था ।
मासूम थी मोह्हबत कहीं सिर झुकाए ,
हर घड़ी कोई दिल में यादों के जख्म चुभो रहा था।
प्यार की भाषा कब दे पाती है कोई परिभाषा ,
दिल क्यों दिल को यकीन दिला रहा था
दर्द था कोई मीठा सा अनजान की यादों का ,
सुनने को बेताब दिल आवाज किसी की,
दिल को खामोशी से सहला रहा था ।
कब समझती है मोह्हबत कायदे और कानून ,

एक भीगा सा अहसास जैसे कोई गुनगुना रहा था ।

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