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Tuesday 4 July 2017

                                १०३,सच्चाई 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,
मेरी रचना सौरभ दर्शन भीलवाड़ा (राजस्थान )में ,थैंक्स संपादक मंडल ।


आपने कुछ जीवन में खोया ,
आपने कुछ जीवन में पाया ।
इन दोनों के बीच में थी ,
जर जोरू और जमीन।
सबकी समीक्षा करने बैठी 
जब मैं ,अगले ही पल
दिमाग मे एक ख़्याल आया ।
मुश्किल है सुख दुख को समझना ,
जाना पड़ेगा विद्वानों की नगरी
जश्न धन का जिन्होंने मनाया ।
कैसे रच पाती रामायण हमारी ,
जो न होती मृग मारीच की माया ।
कैसे होती महाभारत सम्पूर्ण ,
जो न होता नारी का शोषण वहां ।
कैसे लिखी जाती राजनीति की कहानी ,
साकार होती हैं जहां नित्य पट कथाएं
बनाकर मोहरा ,सियासत रंजिश
और जमीन की अनकही भावनाएं ।
खोने और पाने के बीच में ,
गहरी है कहीं खाई ,
अजूबा ही रही जिंदगी को
समझने की छोटी सी चतुराई ।
रिश्ते ,नाते ,यारी सब झूठ है भाई ,
कैसे निभा पाएंगे आज के दौर में
बिन पैसों के रिश्तों की सच्ची गहराई ।
कौन भाई ,कौन है बहना यहां ,
भूल गए माँ बाप को भी ।
आज सिर्फ याद है तो बस ,
जर ,जोरू और जमीन की
झूठी लेकिन यथार्थ सोने सी सच्चाई ।

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