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Saturday 23 January 2021

 136.

#प्रेम की परिभाषा स्वार्थ हो ही नहीं सकती ।यदि कोई #प्रेम को समझ पाता तो इतना लिखने की जरूरत ही न होती ।प्रेम #निस्वार्थ होता है और जो सोच समझकर किया जाए वो सिर्फ #स्वार्थ होता है ।आजकल प्रेम की परिभाषा सिर्फ #लेन- देन और #मतलब पर टिक चुकी है जिसका अंत सिर्फ #हत्या या #आत्महत्या होती है ।प्रेम को आज सिर्फ एक #व्यापार समझ कर किया जाता है कि यदि अच्छा परिवार मिल गया तो जिंदगी #ऐशो आराम में कट जाएगी वरना दूसरा देख लेंगे ।प्रेम की #भाषा सिर्फ राधा कृष्ण का #त्याग ही समझा सकता है जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी दुनिया की #भलाई के लिए एक दूसरे को आँसूओं के बंधन में बाँध लिया और #अमर हो गए ।प्रेम अपने प्रेमी को #दुःख नहीं देता अपितु उसे #जीने की #हिम्मत और #आगे बढ़ने के लिए #प्रोत्साहित करता है । रही प्रेम के #कवि और #कवयित्रियों की बात तो #प्रेम पर वही लिख सकता है जिसने #वास्तव में प्रेम किया हो वरना दूसरों से #लिखवाना और #छापने के लिए दे देना आजकल एक #आम बात है।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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