111.जय श्री कृष्ण मित्रो ,आपका दिन शुभ हो।मेरी रचना #अमर उजाला काव्य पर ।
शीशे की तड़फ न पूछना कभी
हजार टुकड़े होकर भी मरता नहीं
अक्स उसमें देखकर भी पूछते हैं उसी से
किसने और क्यों तोड़ा है तुम्हें/
जख्म भर जाते हैं चोट के
तकलीफ तो देता है वो सुकून
सुख की उम्मीद में जिसे खोजते हैं हम
नासूर बनकर वही छलता है तुम्हें /
नफरत मिली इस जहाँ से इतनी
जैसे सारी कायनात के जिम्मेदार थे हम
छीनकर अपने ही उम्र भर का सुख
पल भर में कर देते हैं तन्हा तुम्हें /
बेगुनाही की मिली सजा कुछ यूँ ताउम्र
गम का सिलसिला चला कुछ ऐसा
खुश हैं वही आज हमारी नादानी पर
समझे थे हम दर्द की दवा जिन्हें /
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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