160.जय श्री कृष्ण दुनिया के लिए आप सिर्फ एक भीड़ हैं और अपनों के लिए दुनिया । कोशिश करें कि अपनों का साथ ताउम्र बना रहे
जिंदगी के तराजू पर कभी
खुद को रखकर तोलना
जो नियम बनाये थे गैरों के लिए
क्या खुद पर सटीक बैठते हैं
वक़्त ने करवट क्या बदली
मेरे अपने ही बदलने लगें
हिजाब पहनने का तो बहाना था
मिजाज उनके बदलने लगे
फुरसत से कभी पढ़ेंगे हम
हाथ की टेड़ी मेढ़ी लकीरों को
बाँचा था जिसने नसीब
उसी के चश्मे बदलने लगे
रसूख क्या करेंगे मोह्हबत का
पैमाइश में जब खोट हो
पुरानी चादरों के बदले
जब तकिए बदलने लगे ।
पर्दा तो मुमकिन है दरारों में ,
दिलों में दरार भरना मुश्किल है
टूट जाता है दिल अक्सर
जब घाव भी रंगत बदलने लगे ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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