48.मेरी रचना सौरभ दर्शन पाक्षिक समाचार पत्र (राजस्थान )में
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एक जिंदगी की उम्मीद ने
सारा भरम भुला दिया ,
बैठे हैं वो भी आज घर में
जिसने सबको रुला दिया ।
कौन किसका सगा होता है
आज कोरोना ने बता दिया ,
मिल सका न एक भी कंधा
वक़्त ने ऐसा सिला दिया ।
करते थे घमंड रुतबे पर बहुत
समय का था अभाव बड़ा ,
क्या होता है प्रकृति का दोहन
वक़्त ने पल में समझा दिया ।
भाग रहे थे पश्चिम की ओर
भुलाकर सनातन संस्कृति ।
मौत की दहशत ने देखो
संस्कारों के करीब ला दिया ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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