96.राजस्थान से प्रकाशित पाक्षिक समाचार पत्र 'सौरभ दर्शन 'में मेरी रचना ।
#नैनों में प्रेम के अदृश्य पंख बिछाए
माँ ही है जो दुख को समझ जाए
कब भूख लगी कब प्यास सताए
माँ से बेहतर ये कौन जान पाए
प्रीत प्रेम का विस्तृत आकाश
दिल में प्रेम की नदिया बहाए
माँ का दिल निश्छल समंदर जैसा
बच्चे को बुरी नजर से बचाये
ममता की साकार मूरत हो तुम
अँखियों में अपनी अश्रु छिपाए
आशीर्वाद से तेरी माँ सबकी
झोलियाँ अक्सर छोटी पड़ जाए
माँ आज भी रोती है ये आँखें
क्यों छोड़ गयी तुम मुझको रोता
आज भी एक प्रश्न समझ न आये
क्या था कसूर जो माफ न कर पाए
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