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Thursday 8 October 2020

 31.बंधनों से निस्तारण में - दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह न्यूज पोर्टल हिन्दी - https://thegramtoday.page/.../bandhanon-se.../HKFaHt.html

मैं व्यर्थ यूँ ही दौड़ती रही
अनजानों की भीड़ में
समझकर बेगानों को अपना
आँख खुली जब उलझ गयीं
अंतर्मन की पीड़ा सस्वर
बंधनों से निस्तारण में ।
वाचन और वचन में बंधकर
खुद को भी जब भूल गयी
सहसा लगे एक तीर से छलकर
बदल गया स्वर भी करुणा क्रंदन में ।
आँखों के आँसू मन के भाव
जाने कोई क्यों न समझ पाता
किसको समझाऊँ व्यथा मैं
अपनी सभी घिरे हैं अल छल में
खुशबू से महका जब भी मन
लगता था हाथ कोई बढ़ायेगा
टूटे हुए फूलों को जैसे आकर
कोई गजरे में अपने सजायेगा ।
भीग गया जब बाल सुलभ मन
द्रवित हुआ जैसे फिर से सावन
बूँदों से मन भी आनंदित हो गया
बिखर गए अकिंचन खुशियों के पल
बाँधकर जैसे अद्भुत सम्मोहन में
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
बंधनों से निस्तारण में
THEGRAMTODAY.PAGE
बंधनों से निस्तारण में
मैं व्यर्थ यूँ ही दौड़ती रही अनजानों की भीड़ में समझकर बेगानों को अपना आँख खुली जब उलझ गयीं अंतर्मन की पीड़ा सस्वर बंध....

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