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Monday 30 December 2019

106.ख़्वाबों के सहारे कब तक जिया जाए ,

मुमकिन है जीना सपनों को गर हक़ीक़त बनाया जाए।

इंसान मकान बनाता है सुकून के लिए ,पता नहीं सुकून कहाँ खो जाता है ।

दमित इच्छाओं का शोध करना जैसे अंगारों पर पाँव रखना ।स्पष्टीकरण का निवारण बाधा ही तो है मंजिल की

नौ दिन की चाँदनी
फिर अंधेरी रात ।
माँ तो .......माँ है ,
कैसा ये भेदभाव ।



दो पुरुषों की लड़ाई में
स्त्री गाली बन जाती है
उसकी हो या मेरी हो
माँ की इज्जत तो जाती है ।


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