Followers

Saturday 28 December 2019

82,


मेरी कविता साहित्यपिडिया पर



#काश कभी तो ऐसा होता #

तुम समझ जाते बिन कहे
मेरे दिल का हाल ।
न कह पायी जुबां वो दर्द
जो तुम कभी सोच भी न पाए

वो बारिश का आना
उम्मीदों का फिर से जाग जाना

कहोगे तुम कभी तो आओ
आज साथ मे भीगते हैं ।

खो जाती हूँ फिर से कल्पना में
तुम्हारे हाथों में हाथ डालकर
झूम रही हूँ मै हल्की बारिश में
थाम रहे हो तुम मुझे अपनी बाहों में ।

वो आसमान में बादलों से झांकता हुआ
चाँद भी चाँदनी के साथ मगन हो रहा है
निहार रही है चाँदनी भी अपलक चाँद को
आओ न हम भी छत पर चलते हैं ।

सो जाओ अब सुबह जल्दी जाना है
सिर्फ मुझसे दूर रहने का रोज का बहाना है ।
दुनिया की भाग दौड़ से हटकर हक़ीक़त में आओ
जरा जिंदगी को करीब से महसूस तो करो ।

भूल जाओगे सारी रंजिशें और गिले शिकवे
हसरतों को जरा साँस तो लेने दो ।
जीने दो मुझको तुम्हारी महकती साँसों के साथ
क्या पता कल जिंदगी का ये हसीन दौर हो न हो

चलो तारों को अठखेलियां करने दो
आसमान को भी जरा अकेले रहने दो
जी लो जिंदगी की आखिरी शाम तो सुकून से
जरा 'वर्षा 'की नजरों से दुनिया को देखो तो सही
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

No comments:

Post a Comment