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Monday, 30 December 2019

144,दिल से दिल की बात आज भी फिजूल है,

प्यार की शुरुआत आज भी दिल से नहीं चेहरे को देखकर होती है ।


राजनीति पर बोलना

बहुत आसान है ,
जरा रिश्तों पर बोलकर दिखाओ तो जानें ।
चुप हो गए हैं यूँ आजकल मौसम
रिश्तेदार हों जैसे वो बहुत ही करीबी ।

दोस्ती पर बोलना बहुत आसान है
जरा प्रेम पर बोलकर दिखाओ तो जानें
खनखनाहट पैसों की भुला देती है
प्रेम की नसीहतें ,नफरतों का बन गया है
यूँ आज आदमी आदी ।

ठंड पर बोलना बहुत आसान है
जरा ठंडे पड़े आदमी पर बोलो तो जानें
फेंक देते हैं मरते ही उसके बिस्तर
वसीयत ,धनदौलत ,जेवर से बढ़ गया है
वर्षा यूँ वास्ता जैसे हो वही सच्चा प्रेमी ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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