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कल के बदायूँ एक्सप्रेस में,
सुबह उठो और समाचार पत्र पढ़ो ।इंसान सुबह ऊर्जा से भरपूर होता है लेकिन अखबार पढ़ते है जैसे उसका दिमाग संज्ञा शून्य हो जाता है ।आजकल सबसे बड़ी खबर सिर्फ बलात्कार छाई हुई है ।आखिर क्यों होते हैं बलात्कार ?क्या किसी ने सोचा है ?उसकी जड़ें कहाँ तक फैली हुई हैं ?कारण क्या हैं ? आजकल जब भी बाजार या किसी काम के सिलसिले में बाहर जाती हूँ चारों ओर देखकर ऐसा लगता है जैसे दुपट्टा वाला मौसम अब रहा ही नहीं । जिधर देखो लड़कियाँ बिना दुपट्टे के नजर आती हैं ।क्या वो लड़कियां जिनका डील डौल एक्स्ट्रा ओवर है उन्हें बेतुके कपड़े शोभा देते हैं ?जब वो घर से बाहर निकलती हैं तो घर में मौजूद माँ या परिवार का कोई सदस्य कुछ कहता नहीं /
अब मुद्दा ये कि जब आप बाहर जाती हैं तो सभी लोग देखते हैं ।आपने tv ऑन किया एक add आता है बाइक का जिसमें लड़की अर्धनग्न कपड़े पहनकर लड़के के साथ शूट कर रही हैं ।आपने दूसरी जगह कुछ और देखना चाहा वहाँ भी अंडर वियर का ऐड चल रहा है जहाँ लड़की साथ में है ।क्या ये ऐड बिना लड़की के नहीं हो सकते ?क्या लड़कियाँ मनोरंजन की वस्तु हैं या प्रॉफिट का जरिया ?
मोबाइल पर तो कोई रोक है ही नहीं छोटे बच्चे बड़ों से ज्यादा एक्टिव रहते हैं । अब जब ये सारी बातें खुलेआम बच्चे बड़े सभी देख रहे हैं तो मन मे विचारों में उत्तेजना आना स्वाभाविक है और यहीं से जन्म होता है बलात्कार का ।इंसान देखता कहीं और है और उसका नतीजा किसी और मासूम को भुगतना पड़ता हैं ।हम कहाँ जा रहे हैं आदिम युग में या आधुनिक बनने की झूठी दौड़ में अपने बच्चों को जीते जी नरक दे रहे हैं ।संस्कार सभ्यता और पाश्चात्य संस्कृति का कोई मेल नहीं ।आइये अपने बच्चों को सही सीख दें तभी हम अपनी सभ्यता को बचा सकते हैं ।धन्यवाद
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
अब मुद्दा ये कि जब आप बाहर जाती हैं तो सभी लोग देखते हैं ।आपने tv ऑन किया एक add आता है बाइक का जिसमें लड़की अर्धनग्न कपड़े पहनकर लड़के के साथ शूट कर रही हैं ।आपने दूसरी जगह कुछ और देखना चाहा वहाँ भी अंडर वियर का ऐड चल रहा है जहाँ लड़की साथ में है ।क्या ये ऐड बिना लड़की के नहीं हो सकते ?क्या लड़कियाँ मनोरंजन की वस्तु हैं या प्रॉफिट का जरिया ?
मोबाइल पर तो कोई रोक है ही नहीं छोटे बच्चे बड़ों से ज्यादा एक्टिव रहते हैं । अब जब ये सारी बातें खुलेआम बच्चे बड़े सभी देख रहे हैं तो मन मे विचारों में उत्तेजना आना स्वाभाविक है और यहीं से जन्म होता है बलात्कार का ।इंसान देखता कहीं और है और उसका नतीजा किसी और मासूम को भुगतना पड़ता हैं ।हम कहाँ जा रहे हैं आदिम युग में या आधुनिक बनने की झूठी दौड़ में अपने बच्चों को जीते जी नरक दे रहे हैं ।संस्कार सभ्यता और पाश्चात्य संस्कृति का कोई मेल नहीं ।आइये अपने बच्चों को सही सीख दें तभी हम अपनी सभ्यता को बचा सकते हैं ।धन्यवाद
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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