47 .शायरी
रूह की तलब हर किसी को नहीं होती ,
इसीलिए हर किसी से मोहहबत नहीं होती।
अमर उजाला काव्य में प्रकाशित,
प्रीत के बागान में जब फूल दर्द के खिले ।
रुला गयीं ओस की बूंद लगाकर मुझे गले।
प्रीत के शहर में जब शूल बोल के चले ,
सहम गई पत्तियां लिपटकर जड़ों के तले।
प्रीत के महल में जब उसूल फर्ज के चले ,
ओढ़ कर उदासियाँ अल्फाज मौत के मिले
प्रीत के दामन में जब छुरियाँ चलने लगे ,
छोड़ कर रास्ता प्रीतम शहर से भाग चले ।
प्रीत के ख्वाबों में जब इश्क़ रश्क से मिले ,
भूल गयी जिंदगी क्यों हर पल सजा मिले ।
- वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
प्रीत के बागान में जब फूल दर्द के खिले ।
रुला गयीं ओस की बूंद लगाकर मुझे गले।
प्रीत के शहर में जब शूल बोल के चले ,
सहम गई पत्तियां लिपटकर जड़ों के तले।
प्रीत के महल में जब उसूल फर्ज के चले ,
ओढ़ कर उदासियाँ अल्फाज मौत के मिले
प्रीत के दामन में जब छुरियाँ चलने लगे ,
छोड़ कर रास्ता प्रीतम शहर से भाग चले ।
प्रीत के ख्वाबों में जब इश्क़ रश्क से मिले ,
भूल गयी जिंदगी क्यों हर पल सजा मिले ।
- वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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