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Monday 30 December 2019

131,कभी कभी सब भूल जाने को दिल करता है ,

सिर्फ माँ की बाहों में झूमने को मन करता है ।
वो बचपन के खेल खिलौने ,वो बचपन का प्यार ,
उदासियों से बाहर आने को मन करता है ,
कभी कभी ........
छल कपट से दूर ,जगमगाता संसार
बचपन की नादानियों में रम जाने को मन करता है ।
कभी कभी ........
कब सुनाई देती थीं ,नए दौर जैसी बुरी कहानियां ।
वो झूठी ही सही परियों को बुलाने का मन करता है ।
कभी कभी .......
मंजिलों की होड़ में मुश्किल था अपनों को भूल पाना ,
भुलाने की नाकाम कोशिशों से भागने को मन करता है ।
कभी कभी .......
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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