138,चलते रहना ही है जिंदगी तेरी
जो रुक गया तो मौत है तेरी ।जिंदगी है कभी घनी धूप
तो कभी आएगी तेरी बारी भी ।
वक़्त इंसान की स्वाभाविक प्रकृति को तो बदल सकता है लेकिन उसके भाग्य को बदलना वक्त के भी बस में नहीं ।
ये कैसा समाज है जो आज भी सिर्फ और सिर्फऔरत को ही प्रताड़ित करता है,जितने ऊँचे घर उतनी ही बंदिशें ......
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