49 .माँ
माँ तेरे बिना कोई नहीं जो बच्चों का दुख समझ सके ।काश जिंदगी देने से पहले ही समझा दिया होता इस दुनिया के उसूल के बारे में ।यहाँ सब कुछ मतलब से ही चलता है ।सिर्फ एक माँ बाप का रिश्ता ही बिना स्वार्थ के होता है ।बच्चे भी कब समझ पाते हैं माँ बाप के दुखों को ? बेटियां विदा हो जाती हैं और आजकल तो बेटे भी दूर ही होते हैं ।अपना कैरियर भी तो देखना होता है|
अंत में सिर्फ माँ बाप फिर अकेले ,अपना दुख दर्द किससे कहें ? यदि बीमार हैं तो खाना कौन बनाये ? कभी कभी ऐसा भी होता है कि एक गिलास पानी के लिए भी सोचना पड़ जाता है ।क्या जीवन है आज के माँ बाप का ।जब तक आपके शरीर मे दम है तो बस करते रहिए बाकी तो ऊपर वाला है न ।माँ आज भी बहुत याद आती है तुम्हारी।खुद के हाथ की बनाई रोटी और चाय अच्छी नहीं लगती।दिल करता है कि कभी तो माँ के हाथ का खाना मिल जाता ।
कद्र कर लो जीते जी ईश्वर की*
जिसने तुम्हें जन्म दिया ।
रह नहीं सकते थे सबके साथ
इसीलिए तो माँ का साथ दिया
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
अंत में सिर्फ माँ बाप फिर अकेले ,अपना दुख दर्द किससे कहें ? यदि बीमार हैं तो खाना कौन बनाये ? कभी कभी ऐसा भी होता है कि एक गिलास पानी के लिए भी सोचना पड़ जाता है ।क्या जीवन है आज के माँ बाप का ।जब तक आपके शरीर मे दम है तो बस करते रहिए बाकी तो ऊपर वाला है न ।माँ आज भी बहुत याद आती है तुम्हारी।खुद के हाथ की बनाई रोटी और चाय अच्छी नहीं लगती।दिल करता है कि कभी तो माँ के हाथ का खाना मिल जाता ।
कद्र कर लो जीते जी ईश्वर की*
जिसने तुम्हें जन्म दिया ।
रह नहीं सकते थे सबके साथ
इसीलिए तो माँ का साथ दिया
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
No comments:
Post a Comment